बहुत दिन मैं तुम्हारे दर्द को सीने पे लेकर
जीभ कटवाता रहा हूँ
उसे शिव की तरह लेकर गले में,
सारी पृथ्वी घूम आया हूँ
कई युग जाग कर काटे हैं मैंने।!
तुम्हारा दर्द दाख़िल हो चूका अब नज़्म में,
और सो गया हैं
पुराने सांप को आखिर अँधेरे बिल में जाके नींद आई !!!
जीभ कटवाता रहा हूँ
उसे शिव की तरह लेकर गले में,
सारी पृथ्वी घूम आया हूँ
कई युग जाग कर काटे हैं मैंने।!
तुम्हारा दर्द दाख़िल हो चूका अब नज़्म में,
और सो गया हैं
पुराने सांप को आखिर अँधेरे बिल में जाके नींद आई !!!
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